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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

विमुद्रीकरण की समस्याएं

                                                 देश में बड़े नोटों के विमुद्रीकरण को एक महीना बीत जाने के बाद भी जिस तरह से आम लोगों की समस्यायों का अंत होता नहीं दिखाई दे रहा है उससे यही लगता है कि इतने बड़े फैसले पर सरकार और रिज़र्व बैंक के आंकलन में कहीं न कहीं बहुत बड़ी चूक भी हुई है जिससे पूरे देश में बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. यह भी सही है कि आम लोग आज भी सरकार के इस फैसले को पूरी आशा के साथ पूरा होते हुए देखने के आकांक्षी भी हैं पर उनकी दैनिक जीवनचर्या जिस तरह से प्रभावित हुई है वह कब कम हो पायेगी इस बात का जवाब भी खोजते हुए सभी दिखाई दे रहे हैं. अब यह भी स्पष्ट हो रहा है कि अगले वर्ष पञ्च राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनावों को देखते हुए ही सरकार ने आनन फानन में इतनी बड़ी घोषणा कर दी जबकि उसके पास नकदी के सम्बन्ध में सटीक आंकड़े भी नहीं थे क्योंकि जिन १४ लाख करोड़ से कुछ अधिक नोटों में से ५/६ लाख करोड़ रूपये कालेधन के रूप में होने का सरकार को अनुमान था विभिन्न कारणों से वह ध्वस्त हो चुका है और सरकार का यह कहना पूरी तरह से बेमानी लगता है कि इससे वह आम लोगों की भलाई के लिए नयी योजनाएं शुरू कर पायेगी क्योंकि जितनी भलाई होनी है उससे अधिक नुकसान तो देश में आर्थिक माहौल थमने से हो ही चुका है.
                                   अब स्थिति यह है कि सरकार अपनी कवायद को विभिन्न कारणों से सफल बताना चाहती है पर उसके पास इन बातों के समर्थन में प्रस्तुत करने लायक आंकड़े ही नहीं हैं और उसकी इस मजबूरी का लाभ विपक्ष उठाना चाहता है जिससे वह भी जनता की समस्याओं में अपनी राजनीति को सम्मिलित कर सके. जैसी कि खबर दी जा रही है कि पौने चार लाख करोड़ की नकदी एक महीने में बाज़ार में बैंकों के माध्यम से पहुँच चुकी है तो अभी भी सरकार को लगभग १४ लाख करोड़ की व्यवस्था करनी है जिसमें संभवतः ६ महीने या उससे भी अधिक समय लग सकता है. यह एक लंबी प्रक्रिया थी जिस के लिये कई महीनों की समग्र तैयारी की आवश्यकता भी थी पर इस बारे में एक ही झटके में फैसला ले लिए गया था जिसके दुष्परिणाम आज सामने आ रहे हैं. यह सही है कि देश में लोगों की पहुँच आधुनिक संसाधनों की तरफ बढ़ रही है जिससे वे अधिक जागरूक भी हो रहे हैं पर जिस तरह से निजी वालेट कंपनियों को इस क्षेत्र में खुली छूट मिल गयी है उससे हमारे बैंकिंग सिस्टम पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ने की पूरी संभावनाएं भी हैं क्योंकि एनपीसीए की तरफ से जारी किये गए यूपीआई एप्लीकेशन्स के बारे में न तो बैंक ही जागरूक हैं और न ही जनता को इस बारे में पहले से बताया गया था. साथ ही प्रारंभिक स्तर पर होने के कारण अधिकांश ग्राहक अपने पंजीकरण को भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं जिससे निजी वालेट पर उनकी निर्भरता बढ़ती ही जा रही है.
                                   देश के अपने ढांचे को मज़बूत करने के लिए जिस तरह से कोशिशें की जानी चाहिए थीं आज वे अधूरी ही है और आने वाले समय में नोटबंदी के चलते अब उनको समय से पूरा कर पाना भी संभव नहीं है जिससे स्थितियां और भी खराब होती जा रही हैं. एक अच्छी बात यह है कि सरकार ने तकनीकी विशेषज्ञ, आधार के जनक और कांग्रेसी नेता नंदन नीलकेणी के साथ मिलकर आज की स्थितियों को सँभालने के लिए एक समिति बना दी है जो देश को नकदी पर निर्भरता कम करने के लिए उचित काम करने की दिशा में बढ़ना शुरू कर चुकी है जिससे कुछ मोर्चों पर तो अगले कुछ हफ़्तों में ही परिवर्तन महसूस हो सकता है. अब समय आ गया है कि सरकार और विपक्ष संसद में चल रहे गतिरोध को आगे बढ़कर समाप्त करने के बारे में सोचें जिससे देश की जनता के लिए कष्टों पर बात करने के स्थान पर कुछ ठोस कदम भी उठाए जा सकें. देश को काले धन के नाम पर उपजी इस समस्या के उचित समाधान की आवश्यकता भी है जिससे सम्पूर्ण रूप से देश की आर्थिक गतिविधियों को वापस पटरी पर लाया जा सके पर वर्तमान परिस्थिति में देश का राजनैतिक तंत्र अपनी इस ज़िम्मेदारी को निभा पाने में पूरी तरह से असफल  होता ही दिखाई दे रहा है.         
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