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गुरुवार, 28 जुलाई 2016

स्टाफ, सुरक्षा और रेलवे परिचालन

                                                                   एक समय था जब सरकार के साथ ही जनता भी यही माना करती थी कि रेलवे में उसकी आवश्यकता से अधिक कर्मचारी सदैव ही काम किया करते हैं और उसमें पदों से अधिक लोगों को भर्ती करके रखा जाना एक सामान्य व्यवस्था पर उत्तर रेलवे के मुरादाबाद मंडल द्वारा जिस तरह से एक साथ ही स्टाफ की कमी का कारण बताकर ३५ सवारी गाड़ियों को निरस्त या परिचालन सीमित कर दिया है उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं रेलवे बोर्ड के स्तर से गाड़ियों के परिचालन में नियुक्तियों संबंधी मामलों में गंभीर लापरवाहियां भी बरती जा रही हैं. इन ट्रेनों में मुरादाबाद, दिल्ली, मेरठ, सहारनपुर, ऋषिकेश, बरेली, शाहजहांपुर, लखनऊ, बालामऊ और सीतापुर से चलने वाली सवारी गाड़ियां शामिल हैं. रेलवे के इतिहास में संभवतः कोहरे के अलावा ऐसा पहली बार हुआ है जिसमें इतनी बड़ी संख्या में गाड़ियों को निरस्त करने की आवश्यकता भी पड़ी है. आंकड़ों के अनुसार केवल मुरादाबाद मंडल में ही २३३ स्टेशन मास्टर, ३८५ ड्राइवर और गार्ड्स के १९४ पद खाली पड़े हुए हैं पर इनको समय से भरने के लिए रेलवे की तरफ से कोई गंभीर प्रयास किये जा रहे होते तो एकदम से इतने पद कैसे खाली हो जाते ? इन ट्रेनों को निरस्त करके मुरादाबाद मंडल ने रेलवे मुख्यालय से भर्तियों के लिए अनुमति भी मांग ली है जिससे जल्दी ही परिचालन वापस पटरी पर लौट सकता है पर वर्तमान में आमलोगों को जो परेशानियों होने वाली हैं उनका ज़िम्मेदार किसे ठहराया जा सकता है ?
                                           अपनी स्थापना के समय से ही रेलवे में कुछ ऐसी व्यवस्था रही है कि वह समय रहते ही अपनी आवश्यकता के अनुरूप लोगों की भर्ती करती ही रहती है और इस तरह की कोई बात अभी तक सामने नहीं आयी थी जिसमें परिचलन से जुड़े आवश्यक स्टाफ की किसी मंडल में इतनी कमी हो गयी हो ? जब एक मंडल में ही ३८५ ड्राइवर कम हैं तो पूरे देश में रेलवे का क्या हाल होगा जबकि यह सब सीधे आम यात्रियों की सुरक्षा से जुडी हुई आवश्यकता ही है और रेल मंत्री सुरेश प्रभु रेलवे की गति और व्यवस्था को हर स्तर पर सुधारने की कोशिश में लगे हुए हैं ? इस मामले में खुद रेल मंत्री को भी ध्यान देना होगा जिससे भविष्य में परिचालन को इतनी अकुशलता के साथ करने के लिए रेलवे को बाध्य न होना पड़े. एक तरफ जहाँ संसद से सभाओं तक खुद रेल मंत्री और सरकार इस बात का प्रचार करते हुए नज़र आते हैं कि रेलवे सही दिशा में जा रही है उसके बीच इस तरह की गंभीर खामियों के बारे में जानकर ही यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार की तरफ से रेलवे बोर्ड पर स्टाफ को कम करने को लेकर दबाव भी बनाया जा रहा है जिससे परिचालन लागत को कम किया जा सके पर इसके यात्रियों की सुरक्षा पर कितने गंभीर प्रतिकूल असर पड़ सकते हैं इस पर कोई विचार नहीं किया जा रहा है.
                                     इस मामले में सरकार को अब पूरे देश से सभी मंडलों से इस तरह के परिचालन से जुड़े हुए आवश्यक स्टाफ के बारे में आंकड़े जुटाने चाहिए जिससे आने वाले समय के लिए रेलवे को तैयार किया जा सके एक तरफ जहाँ अन्य कारणों को सुधार कर परिचालन को पटरी पर लाने की कवायद चल रही है वहीं आवश्यक स्टाफ की इतनी बड़ी कमी से इस उद्देश्य को कैसे पूरा किया जा सकेगा. जब ताल्गो जैसी ट्रेन का परिचालन आने वाले समय में देश के विभिन्न मार्गों पर बढ़ेगा तो क्या इतने कम स्टाफ से काम चल पायेगा यह सोचने का विषय है. राजधानी और शताब्दी की तरह ही ताल्गो पर भी रेलवे बोर्ड की सीधी नज़रें रहने ही वाली हैं तो कम स्टाफ से इन ट्रेनों को समय पर चलाने का अन्य ट्रेनों पर क्या दुष्प्रभाव पड़ सकता है इसे आसानी से समझा जा सकता है. यह सही है कि नयी और बेहतर तकनीक के उपयोग से अब रेलवे को पहले के मुक़ाबले कम स्टाफ की आवश्यकता पड़ती है पर इसके साथ ही आवश्यक लोगों के बिना परिचालन पर कितना बुरा असर पड़ सकता यह मुरादाबाद मंडल के इस कदम से स्पष्ट हो ही गया है. सरकार और रेलवे बोर्ड को इस तरह के किसी भी मामले पर गंभीरता से विचार कर रेलवे को और भी कुशलता के साथ आगे बढ़ाने के बारे में सोचना ही होगा. 
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