मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

मिड डे मील में विष

                                बिहार में जिस तरह से मिड डे मील खाने के बाद बच्चों की मौतें हुई हैं और अभी भी इससे गंभीर रूप से शिकार हुए बच्चे जिंदगी मौत के बीच झूल रहे हैं उससे यही लगता है कि पूरे प्रकरण में कहीं न कहीं या तो कोई साजिश रची गयी गई है या फिर किसी स्तर पर बहुत बड़ी लापरवाही भी हुई है क्योंकि प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार जिस तरह से मौत के शिकार हुए बच्चों के शरीर में ओरगेनिक फोस्फोरस नामक कीटनाशक के अंश मिले हैं उससे यही लगता है कि या तो ग़लती से या फिर जानबूझकर इस कीटनाशक को भोजन में मिलाया गया था ? यदि पूरे प्रकरण में कहीं से भी रसोइये की मिलीभगत होती तो वह इस भोजन को इतनी आसानी से नहीं खाता पर जिस तरह से बच्चों को भोजन देने से पहले कम से एकं तीन लोगों के भोजन चखने की अनिवार्यता है और उसका अनुपालन नहीं किया गया यह अवश्य ही चिंता का विषय है क्योंकि भोजन के पहले चखे जाने से कम से कम उसमें कड़वाहट की शिकायत के कारण उसे सभी बच्चों को परोसने से रोका भी जा सकता था.
                             यह सही है कि इस मामले में राज्य सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकती है फिर भी यदि देखा जाए तो इस मामले में राज्य सरकार केवल विद्यालय में शिक्षकों को भोजन की गुणवत्ता बनाये रखने और उसे चखने के बाद ही परोसने के लिए ही निर्देश दे सकती है और उसके लिए कभी कभार औचक निरीक्षण भी करा सकती है इससे अधिक उसके पास करने के लिए कुछ नहीं होता है. यदि वास्तविक स्थिति में इस योजना को देखा जाए तो बहुत कम स्थानों पर ही इसके बनाने और वितरित करने के मानकों का कड़ाई से अनुपालन किया जाता है इसलिए इसके अनुपालन के लिए अब विद्यालयों के शिक्षकों के लिए यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि किस तरह से अपने कर्तव्य को ठीक ढंग से पूरा करें. जिस तरह से पूरे देश में यह योजना पूरे देश में लागू है तो इसमें किसी भी तरह किसी भी समय इस तरह की साजिश का शिकार बनाया जा सकता है पूरे प्रकरण में जिस तरह से भाजपा और राजद द्वारा राजनीति की जा रही है वह भी शर्मनाक है क्योंकि किसी भी सरकार के समय ऐसी साजिश की जा सकती है.
                              देश को आज यह देखने की आवश्यकता है कि इस तरह की किसी भी सार्वजनिक योजना जिससे पूरे गाँव के बच्चों का स्वास्थ्य जुड़ा हुआ है उस पर सख्ती से ध्यान दिया जाए क्योंकि जब तक निचले स्तर पर इसकी देख रेख में लगे हुए शिक्षक और रसोइये अपनी भूमिका को सही ढंग से पूरा नहीं करेंगें तब तक कोई भी राज्य सरकार इसे पूरी तरह से निरापद नहीं बना सकती है. इस मामले की उच्च स्तरीय जांच भी होनी चाहिए क्योंकि जिस तरह से इसमें राजनीति की जा रही है तो संभवतः किसी स्तर पर इसमें कोई स्थानीय साजिश भी हो क्योंकि गांवों में पंचायत चुनावों के समय बहुत सारी दुश्मनी बिना बात के ही उपज जाया करती हैं और बदला लेने के लिए संभवतः किसी ने यह काम भी किया हो. विद्यालय में तैनात सभी शिक्षकों के पारिवारिक स्तर को जांचा जाना चाहिए क्योंकि किसी को फंसाने के लिए भी उनके किसी विरोधी का भी यह काम हो सकता है. देश में जितने बड़े स्तर पर यह योजना लागू है तो उसकी विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए अब कड़े क़दमों की आवश्यकता है और जांच में यदि आवश्यक हो तो केन्द्रीय एजेंसियों की भूमिका का उपयोग किये जाने से परहेज़ नहीं किया जाना चाहिए.
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