मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 10 जून 2012

पुनर्विवाह की क़ीमत

         यूपी के महोबा जिले के टपरन गाँव में एक महिला को पंचायत के फैसले के अनुपालन में ज़बरिया सफ़ेद साड़ी पहनने की शर्मनाक घटना सामने आई है. महिला का कसूर केवल इतना है कि विधवा हो जाने के बाद अपनी ससुराल से निकाले जाने के बाद अपने दो बच्चों को पालने के साथ उसने अपने भविष्य के लिए पुनर्विवाह कर लिया था. क्या विधवा को इतना भी हक़ नहीं है कि ससुराल से तिरस्कृत कर निकाले जाने के बाद वह अपनी औ अपने बच्चों की सुरक्षा और भविष्य के लिए फिर से विवाह कर सके ? भारतीय कानून इस बात की पूरी इजाज़त देता है क्योंकि कानून में इस तरह की रुढ़िवादी सामाजिक कुरीतियों के लिए कोई स्थान नहीं है फिर भी खुले आम पंचायतें इस तरह के फ़रमान जारी करती रहती हैं और उनके अनुपालन में गाँव वाले सामजिक मर्यादा को भी भूल जाते हैं. इस घटना में पुलिस के हरक़त में आ जाने के बाद मामला तूल पकड़ गया है वरना कोई भी इस घटना को जान भी नहीं पाता और इस महिला के साथ दुर्व्यवहार चलता ही रहता और गाँव में पंचायत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ उसके साथ कोई भी खड़ा नहीं होता ?
  यहाँ पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब पुरुष को अपनी मर्ज़ी से विधुर हो जाने पर पुनर्विवाह करने को सामजिक मान्यता मिली हुई है तो उसी परिस्थिति में किसी ऐसी महिला को जब उसके ससुराल वालों ने छोड़ दिया हो तो वह क्यों ऐसा नहीं कर सकती है ? इस महिला से शादी करने वाले बालकिशन की लोगों ने इतनी पिटाई कर दी है कि वह अस्पताल में भर्ती है फिर भी इस घृणित काम करने के बाद भी लोगों में इस बात का ज़रा भी पश्चात्ताप नहीं है और वे अपने को ही सही ठहराने में लग जाने वाले हैं. ऐसी स्थितियों में अब यह बात भी सामने आएगी और ससुराल वाले अपने को बचाने के लिए महिला के चरित्र हनन तक भी पहुँच जाने वाले हैं ? मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग को इस तरह की घटनाओं को स्वतः ही संज्ञान में लेकर तेज़ी से कार्यवाही करनी चाहिए क्योंकि जब तक यह मामला इस हद तक नहीं उछलेगा तब तक पीड़ित महिला और उसके पति को न्याय नहीं मिल पायेगा और सामाजिक दबाव के चलते गाँव में कोई चाहकर भी इनकी मदद नहीं कर पायेगा.
    इस तरह के अत्याचारों को रोकने के लिए हर ज़िले में एक कारगर तंत्र का होना बहुत आवश्यक है क्योंकि जब भी इस तरह की कोई घटना होती है तो हम सभी अपनी चिंताएं ज़ाहिर कर देते हैं और समय बीत जाने के साथ यह सब भूल जाते हैं जिससे फिर किसी पंचायत को इस तरह के फ़ैसले करने की हिम्मत हो जाती है ? पुलिस का चेहरा ऐसा होना चाहिए कि पीड़ित लोग आसानी से उस तक पहुँच कर अपनी बात को रख सकें साथ ही पुलिस को भी इस बात के स्पष्ट निर्देश होने चाहिए कि वह भी ऐसी घटनाओं के बारे में तुरंत ही अपने उच्च अधिकारियों को अवगत कराये क्योंकि कई बार ऐसा भी होता है कि स्थानीय लोगों के प्रभाव में आ जाने के कारण पुलिस भी कानून का अनुपालन नहीं करा पाती है और यदि यह घटना जिला मुख्यालय के संज्ञान में होगी तो स्थानीय पुलिस अधिकारी भी निडर होकर काम कर सकेगें. सामाजिक मान्यताओं को इस तरह से खोखले आडम्बरों में बाँधने के स्थान पर वास्तव में समाज सुधार के बारे में सोचना शुरू करना चाहिए किसी भी विधवा को भी पुनर्विवाह का उतना ही हक़ और सामाजिक मान्यता मिलनी ही चाहिए जितनी कि किसी पुरुष को मिलती है और जब तक समाज में इतनी जागरूकता नहीं आती है इस तरह की घटनाओं में पीड़ित पक्ष को पूरी तरह से हर तरह की सुरक्षा भी दी जानी चाहिए.  

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. शादीशुदा मर्द एक एक विधवा को भी सहारा दे दें तो विधवाओं को भी जीवन की खुशियाँ मिल सकती हैं।

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