मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 22 मई 2012

रंगों की राजनीति

      सपा बसपा के बीच झूलती यूपी की राजनीति ने पिछले १५ वर्षों में कई बार ऐसे फैसले किये हैं जिससे छोटे बच्चों जैसी हरकतों के साथ सरकार चलाने का एहसास होता है. इसी क्रम में ताज़ा उदाहरण यूपी में यातायात पुलिस की वर्दी में एक बार फिर से बदलाव में दिखाई दे रहा है. २००८ में बसपा सरकार ने अपने नीले रंग से प्रदेश को रंगने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी जिसके बाद यातायात पुलिस की वर्दी में नीला रंग हावी हो गया था. अखिलेश सरकार ने दो दिनों में एक समिति बनाकर नीले रंग को गायब करके फिर से खाकी रंग को वरीयता दे दी है. नीले रंग के आने से तब भी निजी सुरक्षा एजेंसियों के गार्ड्स के साथ पुलिस की वर्दी का भ्रम होता था उस समय भी कुछ हलके विरोध के स्वर सुनाई दिए थे पर तानाशाही सरकार के आगे पुलिस अधिकारियों ने भी चुप रहना ही उचित समझा था. अब जब अखिलेश सरकार ने यह परिवर्तन वापस करके पुरानी वर्दी को ही लागू कर दिया है तो इसमें भी कुछ न कुछ राजनीति होनी ही है.
       यहाँ पर सवाल यह है कि आख़िर क्यों इस तरह से नेता लोग अपनी बातों को प्रदेश की जनता पर थोपने का प्रयास करते रहते हैं ? इस बारे में तो नियमतः पूरे देश में पुलिस की वर्दी एक जैसी ही होनी चाहिए जिसमें केवल प्रदेश पुलिस के बैज आदि से ही अंतर किया जा सके. इस तरह के तुगलकी फ़रमानों से प्रदेश के ख़जाने पर पड़ने वाले खर्चे को आख़िर किस तरह से उचित ठहराया जा सकता है ? नेताओं के तलवे चाटने में जिस तरह से बसपा सरकार में यूपी के अधिकारियों ने रिकार्ड ही बना डाले उसकी कोई सानी देश में नहीं मिल सकती है सड़क पर लगने वाले अवरोधकों को जिस तरह से काले पीले की जगह नीले रंग से भी रंग गया वैसा उदाहरण पूरी दुनिया में नहीं मिल सकता है. सड़क सुरक्षा में ज़रूरी मानकों के लिए निर्धारित रंगों के साथ जिस तरह से परिवर्तन  किया गया वह भी अपने आप में अनूठा ही था.
      जनता जब किसी दल को यह अधिकार देती है कि वह सरकार चलाये तो क्या सरकार को इस तरह से चलाने का हक़ नेताओं को मिल जाता है कि वे स्थापित अंतर्राष्ट्रीय मानकों की भी अनदेखी करके कुछ भी करते रहें ? प्रदेश में आगरा और वाराणसी में बहुत सारे विदेशी पर्यटक आते रहते हैं उस स्थिति में यहाँ पर रंगों के इस तरह के ग़लत संयोजन से आख़िर वे देश /प्रदेश के बारे में क्या धारणा बनाकर जाते होंगें ? सरकारी विज्ञापनों में इन दलों को अपनी पार्टी के रंगों के इस्तेमाल करने की छूट आख़िर किस नियम के तहत इन लोगों को मिली हुई है ? क्या पूरे देश में एक ऐसा कानून नहीं होना चाहिए जिसमें सरकारी विज्ञापनों में एक जैसे रंगों का प्रयोग किया जाये और यदि इस बात में भी विवाद हो तो केवल सफ़ेद और काले रंग का ही प्रयोग किया जाना चाहिए. सरकार चलाने में नाकाम रहने वाले नेता लगता है कि अपनी पार्टी के रंगों में रंग कर छपे विज्ञापनों को देखकर ही खुश होने और अपनी सरकार के होने के एहसास से संतुष्ट हो जाने की आदत के शिकार हो जाते हैं.    
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